शनिवार, १२ ऑक्टोबर, २०१९

ख़ुद से ख़ामोशी है.... 
 
नाराज़गी की सौ वज़ह थी
पर मुस्कान बस अपना
नाम लेने से ही आ जाती थी
मनाने के सौ तरीक़े ढूंढे थे
पर दिल से ख़ुश रहने की 
बस एक वज़ह काफ़ी थी

अब सब ख़ामोश सा है
 ख़ुद से बातें कम होने लगी है  
किसी औऱ से बातों का
सिलसिला बढ़ रहा है
पर कुछ कमी सी है
शायद ख़ुद के एहसास की

कुछ समय ख़ुद से गुमशुदा क्या रहें
मानो ख़ुद से ही जुदा हो गए 
शायद अब कुछ एहसास
अभी भी जिन्दा है हम में 
ख़ुद की अहमियत किसी और में
ढूंढना अब जरुरी नहीं ....


 (स्वलिखित-by self)
©️वर्षा_शिदोरे

५ टिप्पण्या: