रविवार, २२ सप्टेंबर, २०१९

शायद इसिलिये ख़ामोश है हम...!
 
अंदर चाहें कितना भी हो दर्द
मुस्कुराने की कोशिशें जारी है
अंदर चाहें कितना भी हो गुस्सा
जुबान पे मीठी बोली हमेशा है
मतलब हम दोहरा स्वभाव के नहीं

इंसान ही इंसान को दर्द दे
ये ना मंजूर है...ना ग़वारा
गुस्से से ज्यादा क़दर तो हमें
हमारे अपनों और चाहनेवालोंकी है
शायद इसिलिये ख़ामोश है हम...!
 
 
(स्वलिखित-by self)
©️वर्षा_शिदोरे   

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